मेरे प्यारे बच्चों! मैं तुम्हारी घर-वापसी पर तुम्हारा स्वागत गले लगाकर करती हूं। मैने देखा, शहर में अनुचित-अन्यायी और हिंसावादी अर्थव्यवस्था ने तुम्हें जड़ों से हिलाकर रख दिया। जिसने तुम्हें यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि जिस अर्थव्यवस्था के पीछे तुम भाग रहे थे वह निहायत ही मानवीय गुणों को खत्म करने वाली थी। मेरे ही कुछ बच्चों ने अत्याधिक आर्थिक विकास के भ्रमजाल में तुम्हें फंसाया। अर्थव्यवस्था के झूठ को तुमसे छुपाया। और अपने लालच की सीमा को पार कर दिया। वे मेरी पारिस्थितिक सीमा लांघने लगे और मेरे ही द्वारा दिये गये उपहारों को लूटने पर उतारू हो गये। मैंने तुम्हें कुछ अर्थपूर्ण काम करने के लिए जीवन का अधिकार दिया। तुम्हें भोजन-पानी और हवा दी। काम करने का अधिकार दिया। रचनात्मक बनने का वरदान दिया। पर मेरे ही कुछ बच्चों ने मेरे कानून और अधिकारों पर कुठाराघात/ किया और तुमसे ये सारे अधिकार छीन लिए। मेरे इन बिगड़े और शैतान बच्चों ने जीडीपी के हव्वामहल का निर्माण किया। और अपने लालच पर पर्दा डालने के लिए/छुपाने के लिए ’बाजार का कानून’ बनाया। उन्होंने मेरे दूसरे बच्चों के खिलाफ हो रही हिंसा को सही करार दिया। उन्होंने जहर से भी जहरीली वस्तुओं को बेचा। इस जहर ने मेरे अधिकतर जीवों/बच्चों को खत्म होने के कगार पर धकेल दिया। उन्होंने इन अनावश्यक, महंगी जहरीली वस्तुओं को तुम्हें बेचा और जितना हो सकता था उतना मुनाफा तुमसे लूटा। तुम्हारा शोषण किया। मेरे प्यारे बच्चो, तुम्हारे ही कुछ भाइयों ने तुम्हें मेरी फिक्र करने से रोका। उन्होंने तुम्हारे परिवार, तुम्हारे समुदाय और तुम्हारे देश को भोजन-पोषण देने वाली जैवविविधता की रक्षा करने से तुम्हें रोका। उन्होंने तुम्हें आलू-प्याज-टमाटर के नाम पर ’नकदी फसलों’ को उगाने में उलझाया। इनसे नकदी तो नहीं मिली, लेकिन तुम कर्ज के दल-दल में जरूर फंस गए। तुम उन फसलों के साथ महंगे बीज-खाद और कीटनाशकों की चपेट में आ गए। वे नगदी फसलें तुम्हारे लिए ऐसी जी-का-जंजाल बन गई, तुम्हारे गले की हड्डी बन गई, जिससे कई तरह की बीमारियों का जन्म होता है। और कई तरह की बीमारियां फैलती हैं। |
तुम्हें मालूम होगा या तुम्हें यह जानकारी ना भी हो कि मधुमेह एक मेटाबोलिक/उपापचय या पाचन संबंधी विकार है, जिसकी जडें मानवीय आहार से फूटती हैं। तुम्हें भी जानकर आश्चर्य होगा कि हर साल मेरे दस लाख बच्चे मधुमेह के कारण मर जाते हैं। मुझे तुम्हारे भोलेपन पर दया भी आती है और दुःख भी होता है। तुमने पेप्सी के लिए आलू उगाए और प्रत्येक 20 किलो0 पर 5 रूपये पाये। पेप्सी वालों ने आलू को चिप्स में बदला और 52 ग्राम की हव्वा-फुस्स पैकेट को 20 रूपये में बेचा। और तुमने क्या पाया? तुम तक पहुंचे 0.04 पैसे। साथ ही तुम्हारे सिर में आया हल/टै्र्रक्टर-बीज-पानी-उर्वरक-कीटनाशक और मजदूरी पर लगने वाला कर्ज का भार। और कर्जे की मार ने तुम्हें मुझसे, अपनी मॉं से, अपने घर से दूर शहर में जाने और वहां अमानवीय स्थितियों में रहने को मजबूर कर दिया। तुम मुझसे दूर ना भी जाते और मेरी देखभाल करते, लेकिन तुम शातिर और दुष्ट प्रचारकों के भ्रमजाल में फंसकर यह समझने लगे कि ’’खेती भी कोई चीज होती है? क्या युवाओं को खेती करना शोभा देता है?’’ ....और फिर कोरोना ने महामारी का रूप ले लिया। देश/दुनिया अचानक लॉकडाउन हो गई। जिस शहर में तुम पैसा-पाई और सुरक्षा के लिए गये थे, उसी शहर ने तुम्हें सड़क पर पटक दिया। और तुम सड़क पर आ गये। मेरे बच्चों, तुम्हारे साथ जब ऐसा व्यवहार हुआ, तो क्या तुम्हारी मॉं को अच्छा लगा होगा? तुम्हारे साथ हुए इस अमानवीय व्यवहार से मुझे भी तुम्हारी मॉं जैसा ही दुःख हुआ। बहुत वेदना और बड़ी पीड़ा हुई मुझे। इस लॉकडाउन के दौरान मुझे तुममें एक बात बहुत अच्छी लगी। और वह बात थी तुम्हारे जीने का संकल्प। तुमने जिस संकल्प के साथ, साहस और धैर्य के साथ शहर से घर तक आने पर जो लम्बी यात्रा तय की, वह अद्भुत थी। मैने देखा, तुम्हारे पांव थके, लेकिन तुमने हिम्मत नहीं हारी। मैं तुम्हारे इस साहस की दाद देती हूं! मेरे बच्चों! मैं तुम्हें गले लगाती हूं! तुम में से कईयों ने घर वापसी का संकल्प लिया और इस बीच मेरी कई संताने मर भी गई। उन सबके लिए मैने कितना दर्द महसूस किया होगा! शायद तुम समझ सकते हो। जो लोग घर आ गए हैं, उनसे मैं कहूंगी कि तुम फिर से मुझे छोड़कर ना जाना। तुम उस झूठी अर्थव्यवस्था को छोड़ दो और उसकी तरफ अपना मुंह फेर दो, जिसने तुम्हें ’यूज एण्ड थ्रो’ की तर्ज पर फेंक दिया। तुम्हें ’दूध की मक्खी’ की तरह छिटक दिया। |
प्यारे बच्चो! विश्व जैवविविधता दिवस मेरे (धरती) द्वारा दिए गये समृद्ध और उदारतायुक्त जैवविविध उपहारों का जश्न मनाने का दिन है। यह दिन अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ धरती (धरती एक परिवार) के दूसरे सदस्यों के अधिकारों की रक्षा करने हेतु संकल्प का समय है। |